हाल-ए-दिल यार को सुनाना क्या रो के ख़ुद उस को भी रुलाना क्या खा रहे हो क़सम जवानी की इस जवानी का है ठिकाना क्या लेना आठों पहर तुम्हारा नाम सारी दुनिया को भूल जाना क्या मेरे दिल ही में जब बसा है वो फिर भी उस की गली में जाना क्या आज हैं दोस्त और कल दुश्मन ऐसे लोगों का दोस्ताना क्या खुल गया जब कि बेवफ़ा है वो फिर उसे और आज़माना क्या बीज बोते हैं लोग नफ़रत के उठ गया प्यार का ज़माना क्या जिन की यादों से उन की याद आए वो जफ़ाएँ भी भूल जाना क्या गर नहीं हैं ये खेल उल्फ़त के रूठना क्या है और मनाना क्या दिल में फिर गुदगुदी लगी उठने फ़स्ल-ए-गुल का है ये ज़माना क्या क़त्ल-ओ-ग़ारत है अश्क-बारी है देखा जाता है ये ज़माना क्या ग़म-ए-दौराँ ही कम न था ऐ दिल अब ग़म-ए-इश्क़ भी उठाना क्या ख़ुद-बख़ुद झुक रहा है सर 'आलम' आ गया उस का आस्ताना क्या