हाल-ए-दिल-ए-बे-क़रार है और शायद कि ख़याल-ए-यार है और ऐ दीदा न रो कि तुझ पर इक शब रंज-ए-शब-ए-इंतिज़ार है और जागा है कहीं मगर तू दी-शब आँखों में तिरी ख़ुमार है और फ़रहाद ने देखते ही गुलगूँ जाना था कि ये सवार है और कूचे में तिरे मिरी निगह का हर गोशा उमीद-वार है और है आख़िर-ए-उम्र इस चमन में दो चार ही दिन बहार है और नावक का तिरे शिकार-गह में हर गोशे नया शिकार है और वो हम से करे है कल का व'अदा औरों से वहाँ क़रार है और क्या लाले से निस्बत उस को सच है दाग़-ए-दिल-ए-दाग़दार है और औरों सा न जान मुझ को प्यारे ये आशिक़-ए-जाँ-निसार है और ऐ 'मुसहफ़ी' इस में चुप ही रह तू सुनता है ये रोज़गार है और