हाल-ए-हिजाब क़ाबिल-ए-शरह-ओ-बयाँ नहीं आँसू न टपके सुन के ये वो दास्ताँ नहीं दिल में जिगर में सीने में पहलू में आँख में ऐ इश्क़ तेरी शो'ला-फ़िशानी कहाँ नहीं करते हो क़त्ल बुल-हवसों को ग़ज़ब है ये समझे हो तुम मगर कोई आशिक़ यहाँ नहीं पूछो न हाल-ए-ज़ार मिरा तुम से क्या कहूँ गुम-कर्दा राह-ए-बाग़ हूँ याद आशियाँ नहीं हम भी ख़रीद लेते तिरे ज़ुल्म के लिए बाज़ार-ए-दहर में कोई दिल की दुकाँ नहीं देते हैं छेड़ छेड़ के क्यूँ मुझ को गालियाँ समझे हुए हैं वो मिरे मुँह में ज़बान नहीं वो और मिरे घर में चले आएँ ख़ुद-बख़ुद सर पर मिरे हिजाब मगर आसमाँ नहीं