हाल-ए-पोशीदा खुला सामान-ए-इबरत देख कर पढ़ लिया क़िस्मत का लिक्खा लौह-ए-तुर्बत देख कर इस क़दर बे-ख़ुद हुआ आसार-ए-वहशत देख कर आईना से नाम पूछा अपनी सूरत देख कर देखिए महशर में भी सूरत दिखाए या नहीं सुबह भागी है शब-ए-हिज्राँ की ज़ुल्मत देख कर जाम-ए-कौसर दस्त-ए-साक़ी में नज़र आया मुझे उठ गया आँखों का पर्दा अब्र-ए-रहमत देख कर रात दिन के मख़मसे से ऐ जुनूँ पाई नजात अबलक़-ए-अय्याम भागा मेरी वहशत देख कर तेरे कूचे में तिरा जल्वा नज़र आया मुझे साने-ए-जन्नत को देखा बाग़-ए-जन्नत देख कर मुँह हमारा जल्वा-ए-दीदार के लाएक़ कहाँ अपनी सूरत देखते हैं तेरी सूरत देख कर चार दीवार-ए-अनासिर पर सफ़ेदी फिर गई आँखें रौशन हो गईं तेरी सबाहत देख कर वहशत-ए-दिल हश्र के दिन भी रहे कावुस तलब काँटे ढूँढे हम ने सहरा-ए-क़यामत देख कर चहचहे बुलबुल के आवाज़-ए-कफ़-ए-अफ़्सोस हों रंग-ए-गुल उड़ जाए मेरा दाग़-ए-हसरत देख कर अब्र उधर आया इधर मय-ख़्वारों का बेड़ा है पार कश्ती-ए-मय मोल के दरिया-ए-रहमत देख कर आँसू पोंछे याद आया जब जवानी का मज़ा आँखें मलते रह गए हम ख़्वाब-ए-राहत देख कर बरहमन काबा में आया शैख़ पहूँचा दैर में लोग बे-वहदत होए हैं तेरी कसरत देख कर हर घड़ी आती है कानों में ये आवाज़-ए-जरस कौन दुनिया से सफ़र करता है साअ'त देख कर नश्शा के अस्बाब-ए-तज़ईंं में भी नश्शा है ज़रूर मेरी आँखें चढ़ गईं मय-ख़ाने की छत देख कर अब नहीं नाज़ुक-मिज़ाजी से तवज्जोह का दिमाग़ ऐ अजल आना कभी हंगाम-ए-फ़ुर्सत देख कर वो मुवह्हिद हूँ न रक्खा दूसरे से इत्तिहाद रूह ने छोड़ा बदन को ज़िद्द-ए-वहदत देख कर ख़ून-ए-बुलबुल से मगर सींचा है बाग़-ए-दहर को हम लहू बरसाते हैं फूलों की रंगत देख कर तेरे बंदे सर झुकाते हैं बुतों के सामने सज्दे करता हूँ इलाही तेरी क़ुदरत देख कर ज़ख़्मी-ए-तेग़-ए-तग़ाफ़ुल पर नज़र जमती नहीं चश्म-ए-सोज़न बंद होती है जराहत देख कर जी लगा कर ये ग़ज़ल किस तरह कहिए ऐ 'मुनीर' बुझ गया दिल कूच-ए-मंज़िल की अज़ीमत देख कर