जब कोई फूल मुसख़्ख़र न हो आसानी से काम लेता हूँ वहाँ नक़्द-ए-सना-ख़्वानी से रौशनी देने लगे थे मिरी आँखों के चराग़ रात तकता था समुंदर मुझे हैरानी से कर के देखूँगा किसी तरह लहू की बारिश आतिश-ए-हिज्र बुझेगी न अगर पानी से उन को पाने की तमन्ना नहीं जाती दिल से क्या मुनव्वर हैं सितारे मिरी ताबानी से कोई मसरूफ़ है तज़ईन में क़स्र-ए-दिल की चोब-कारी से कहीं आइना-सामानी से ख़ाक-ज़ादों से तअ'ल्लुक़ नहीं रखते कुछ लोग मेज़बानी से ग़रज़ उन को न मेहमानी से मैं इसी ख़ाक पे बैठा हूँ बड़े शौक़ के साथ कोई निस्बत नहीं अब तक मुझे सुल्तानी से बंद हो जाए अगर रौज़न-ए-इम्कान-ए-ख़याल ख़्वाब खुलते हैं मिरे दिल में फ़रावानी से मेरी सूरत से जो बेज़ार हैं अब भी 'साजिद' कब वो ख़ुश होंगे मिरे तर्ज़-ए-मुसलमानी से