हम आप ही को अपना मक़्सूद जानते हैं अपने सिवाए किस को मौजूद जानते हैं इज्ज़-ओ-नियाज़ अपना अपनी तरफ़ है सारा इस मुश्त-ए-ख़ाक को हम मस्जूद जानते हैं सूरत-पज़ीर हम बिन हरगिज़ नहीं वे माने अहल-ए-नज़र हमीं को मा'बूद जानते हैं इश्क़ उन की अक़्ल को है जो मा-सिवा हमारे नाचीज़ जानते हैं ना-बूद जानते हैं अपनी ही सैर करने हम जल्वा-गर हुए थे इस रम्ज़ को व-लेकिन मादूद जानते हैं यारब कसे है नाक़ा हर ग़ुंचा इस चमन का राह-ए-वफ़ा को हम तो मसदूद जानते हैं ये ज़ुल्म-ए-बे-निहायत दुश्वार-तर कि ख़ूबाँ बद-वज़इयों को अपनी महमूद जानते हैं क्या जाने दाब सोहबत अज़ ख़्वेश रफ़्तगाँ का मज्लिस में शैख़-साहिब कुछ कूद जानते हैं मर कर भी हाथ आवे तो 'मीर' मुफ़्त है वो जी के ज़ियान को भी हम सूद जानते हैं