हम अज़ल से अन-चाहे ज़ाब्तों में रहते हैं ज़िंदगी का लालच है क़ातिलों में रहते हैं हम अजब मुसाफ़िर हैं रास्तों से डरते हैं मंज़िलों की ख़्वाहिश है और घरों में रहते हैं आज भी रिहाई के कुछ बचे-खुचे जज़्बे हम शिकस्त ख़ुर्दा हम जय्यदों में रहते हैं ढूँडते हैं अपने कुछ गुम-शुदा इरादों को हम कि अपने ख़्वाबों की किर्चियों में रहते हैं क्यों बिछड़ने वालों के अक्स मर नहीं सकते क्यों ये अश्क आँखों के आईनों में रहते हैं सर उठा के चलने का शौक़ हो जिन्हें 'अख़्तर' वो तो दास्तानों या मक़्तलों में रहते हैं