हम अज़ीज़ इस क़दर अब जी का ज़ियाँ रखते हैं दोस्त भी रखते हैं तो दुश्मन-ए-जाँ रखते हैं तबअन इंसान तो दिल-दादा-ए-फ़स्ल-ए-गुल है हम अजब लोग हैं जो ज़ौक़-ए-ख़िज़ाँ रखते हैं आरिज़-ए-गुल हो लब-ए-यार हो जाम-ए-मय हो जिस्म जल उठता है हम होंट जहाँ रखते हैं वाक़िआ' ये भी है हक़ बात नहीं कह सकते ये भी दा'वा है बजा मुँह में ज़बाँ रखते हैं जिस जगह दिल था वहाँ हसरत-ए-दिल बाक़ी है जिस जगह ज़ख़्म था अब एक निशाँ रखते हैं हम से कर जाता है वो शख़्स फ़रेब आख़िर-कार जिस के बारे में भी हम नेक गुमाँ रखते हैं 'शौकत' उस्लूब-ए-ग़ज़ल है मुतअय्यन ताहम इस में हम मुनफ़रिद अंदाज़-ए-बयाँ रखते हैं