गर्दिश में चश्म-ए-दोस्त का पैमाना आज्ञा लीजे मक़ाम-ए-सज्दा-ए-शुकराना आ गया मैं और शराब-ए-नाब मगर इस को क्या करूँ ग़म मुझ को ले के जानिब-ए-मय-ख़ाना आ गया यारा-ए-ज़ब्त रह न सका रू-ब-रू-ए-दोस्त आँखों में खिंच के दर्द का अफ़्साना आ गया सू-ए-हरम चले थे बड़े एहतिमाम से क़िस्मत की बात राह में बुत-ख़ाना आ गया सज्दे मचल रहे हैं जबीन-ए-नियाज़ में शायद क़रीब-तर दर-ए-जानाना आ गया दिल है अगर तो दिल का धड़कना है लाज़मी रौशन हुई जो शम्अ' तो परवाना आ गया यूँ दूर हो गई मिरी मंज़िल कि राह में मय-ख़ाना आ गया कभी बुत-ख़ाना आ गया ऐ 'शौक़' उन की बज़्म से शोहरत मिली मुझे हर सम्त एक शोर है दीवाना आ गया