हम अपनी फ़िक्र का चेहरा बदल के देखते हैं तिलिस्म ख़्वाब से बाहर निकल के देखते हैं सुना ये है कि बहुत तेज़ गाम हो तुम लोग तुम्हारे साथ ज़रा हम भी चल के देखते हैं उठा के चाँद सितारों को सर पे देख चुके हम अपने माथे पे अब ख़ाक मल के देखते हैं ज़रा पता तो चले हुस्न-ए-अहद-ए-नौ क्या है नई निगाह के साँचे में ढल के देखते हैं नई हयात की तस्वीर देखने वाले हद-ए-निगाह से आगे निकल के देखते हैं ये कैसे दोस्त हैं पूछे तो कोई उन से ज़रा सँभालते नहीं लेकिन सँभल के देखते हैं यहाँ वहाँ तो बहुत जल चुके मियाँ 'क़ैसर' अब अपने दिल की समाधी पे जल के देखते हैं