क्या दिल है अगर जल्वा-गह-ए-यार न होवे है तूर से क्या काम जो दीदार न होवे कुछ रंग नहीं नग़्मा-ओ-आहंग में उस के बुलबुल जो बहाराँ में गिरफ़्तार न होवे दिल जल जो गया ख़ूब हुआ सोख़्ता बेहतर वो जिंस कोई जिस का ख़रीदार न होवे शमशाद को देवे है क़ज़ा वार के तुझ पर जो जामा तिरे क़द पे सज़ा-वार न होवे नीं बाग़-ए-मोहब्बत में 'यक़ीं' उस को कहीं जा जिस दिल में कि दाग़ों सती गुलज़ार न होवे