हम अपनी सारी ख़्वाहिश हर तमन्ना छोड़ देते हैं तुम्हें पाने को हम हर रोज़ क्या क्या छोड़ देते हैं मैं जब भी स्याह रातों में तुम्हारा नाम लेता हूँ तुम्हारी याद के जुगनू उजाला छोड़ देते हैं ये तन्हाई हमें इक रोज़ तन्हा कर के मानेगी चलो तन्हाइयों को हम ही तन्हा छोड़ देते हैं हमें अपनी ज़मीं का ही घरौंदा ठीक लगता है तभी तो हम सितारों का ठिकाना छोड़ देते हैं कहीं रिश्तों के कमरे में वो ख़ुद को क़ैद न समझें सो हम बाहर निकलने का भी रस्ता छोड़ देते हैं मोहब्बत में किया हर एक वा'दा यूँ निभाते हैं कि हम वादे की ख़ातिर सारी दुनिया छोड़ देते हैं ज़ियादा रौशनी में भी दिखाई कुछ नहीं देता तुम्हारी आँख खुल जाए अंधेरा छोड़ देते हैं ये दौलत ग़ैर की है साथ तो जा ही न पाएगी तो फिर किस काम का है ये ख़ज़ाना छोड़ देते हैं ज़रूरी तो नहीं है 'शाद' हर क़िस्सा मुकम्मल हो तो अपनी इस ग़ज़ल को भी अधूरा छोड़ देते है