ऐ इश्क़-ए-बे-नियाज़ ये क्या इंक़िलाब है ग़म कामयाब है न ख़ुशी कामयाब है मस्ती में हर फ़रेब-ए-ख़िरद बे-नक़ाब है इस वक़्त जो गुनाह भी कीजे सवाब है फ़िक्र-ए-मआल-ए-इश्क़ न की हम ने इश्क़ में मालूम था कि ख़्वाब ही ताबीर-ए-ख़्वाब है रुस्वाइयाँ हैं इश्क़ की मेराज-ए-ज़िंदगी ये तुम ने क्या कहा कि ज़माना ख़राब है ग़म पर असर नहीं है किसी इंक़िलाब का और ग़म बजा-ए-ख़ुद असर-ए-इंक़लाब का हासिल है लुत्फ़-ए-दीद मगर ये ख़बर नहीं तू बे-हिजाब है कि नज़र बे-हिजाब है 'शाहिद' बग़ैर वज्ह नहीं नज़्म-ए-काएनात इस बज़्म-ए-नाज़ में कोई दिल बारयाब है