हम फड़क कर तोड़ते सारी क़फ़स की तीलियाँ पर नहीं ऐ हम सफ़ीरो! अपने बस की तीलियाँ बहर-ए-ऐवाँ और बनवा चिलमन ऐ पर्दा-नशीं हो गई बद-रंग हैं अगले बरस की तीलियाँ ख़ाक में ना जिंस रहते हैं न अहल-ए-इम्तियाज़ ऐ फ़लक बनती नहीं जारूब ख़स की तीलियाँ ऐन फ़स्ल-ए-गुल में ही सय्याद-ए-बे-परवा ने आह दस के पर कतरे तो कीं आँखों में दस की तीलियाँ हिर्स-ए-दुनिया चाहती है ये कि सीम-ओ-ज़र की हों ये चराग़-ए-ख़ाना-ए-अहल-ए-हवस की तीलियाँ इम्तियाज़-ए-नेक-ओ-बद ख़ुद हो न जिस को ऐ 'नसीर' उस के नज़दीक एक हैं ख़ाशाक-ओ-ख़स की तीलियाँ