हम क़ुव्वत-ए-जज़्ब-ए-दिल दिखाएँ और फिर वो हमारे घर न आएँ क्या चीर के सीना-ए-दिल दिखाएँ कुछ हाल सुनो तो हम सुनाएँ ऐ बख़्त कहाँ तलक बुराई ऐ चर्ख़ कहाँ तलक जफ़ाएँ हम सीना-सिपर किए खड़े हैं वो शौक़ से ख़ंजर आज़माएँ जो काम में ग़ैर के हुईं सर्फ़ अफ़्सोस वो दिल-रुबा अदाएँ शायद कि है गर्म-ए-नाला 'साक़िब' चलती हैं शरर-फ़िशाँ हवाएँ