हम किनारा किए किनारों से खेला करते हैं मंजधारों से हम गुज़रते हैं खेलते हँसते शोला-ज़ारों से ख़ारज़ारों से नाम पाते हैं नासेह-ए-बे-नाम हम से बदनाम बादा-ख़्वारों से तुफ़ ब-मतलब-बरारी-ए-याराँ उफ़ ये अतवार ख़ाकसारों से जिन के दिल में गुलों की चाहत है पहले वो सुरख़-रू हों ख़ारों से दिल की राहों में बो लिए काँटे कर के उम्मीद गुल-एज़ारों से यूँ है जुम्बिश में फूल की डाली वो बुलाते हैं जूँ इशारों से यूँ तो मह-वश हज़ार देखे हैं तुम जुदा हो मगर हज़ारों से बुल-हवस है रक़ीब बातिन में तौर ज़ाहिर में जाँ-निसारों से इक फ़साना कि था दयार अपना इक हक़ीक़त कि बे-दयारों से तू ने ऐ दोस्त साथ क्या छोड़ा दिल लरज़ता है अब सहारों से गर्म बाज़ार है मिरे फ़न का दाद पाता हूँ नक़्द-कारों से रूठ जाएँ न वो कहीं 'आमिर' शे'र पढ़िए न यूँ इशारों से