हम को ख़ुश आया तिरा हम से ख़फ़ा हो जाना सर-ब-सर ख़्वाब का ता'बीर-नुमा हो जाना चंद अश्कों ने छुपाया है मुकम्मल मंज़र हम पे खुलता ही गया तेरा जुदा होना अपनी ख़्वाहिश तिरी यादों में भटकती है कहीं जैसे गुल-गश्त में तितली का फ़ना हो जाना शाख़-दर-शाख़ सुबुकसार हवाओं का गुज़र इक क़फ़स से किसी पंछी का रहा हो जाना अश्क गिरते ही खिले फूल मिरे दामन में रुत बदलते ही परिंदों का सदा हो जाना एक साए का है एहसास मिरे सर पे सदा कौन सोचेगा कभी ख़ुद से ख़ुदा हो जाना आश्ना हम भी मोहब्बत से नहीं हैं हरगिज़ हाए इस रब्त का भी नज़्र-ए-अना हो जाना