ढूँड रक्खी है मिरी वहशत ने आसानी मिरी घर की हालत ही में रख दी है बयाबानी मिरी नाम ही को बस पड़ेगा बोझ तेरी जेब पर देखने की है सर-ए-बाज़ार अर्ज़ानी मिरी होश है बस इस क़दर नैरंगी-ए-हालात में दो क़दम रहती है आगे मुझ से हैरानी मिरी हुस्न-ए-बे-परवा को ख़ुद से थोड़ा ग़ाफ़िल देख कर मुझ को क्या कुछ इस का दिखलाती है उर्यानी मिरी वो अजब इक शहर था जिस में कटे यूँ माह ओ साल दिन से मैं वाक़िफ़ नहीं था शब थी अनजानी मिरी है कोई जो रख रहा है रोज़ ओ शब का सब हिसाब होती रहती है कहीं पर सख़्त निगरानी मिरी हर तरह के मौसमों में मेरा रखता है ख़याल है कोई जो करता रहता है निगहबानी मिरी आज भी कज है उसी धज से फटी सी इक कुलाह तंग करती है अभी तक ख़ू-ए-सुल्तानी मिरी किस जगह है वो बचा रक्खा है जिस के वास्ते एक सज्दा जो लिए फिरती है पेशानी मिरी ख़ुद बना लेता हूँ मैं अपनी उदासी का सबब ढूँड ही लेती है 'शाहीं' मुझ को वीरानी मिरी