हम लोग जो ख़ाक छानते हैं By Ghazal << इस रहगुज़र में अपना क़दम ... हर्फ़ हर्फ़ गूँधे थे तर्ज... >> हम लोग जो ख़ाक छानते हैं मिट्टी से गुहर निकालते हैं है शोला-ए-दीं कि शम्-ए-कुफ़्र परवाने कहाँ ये जानते हैं इस गुम्बद-ए-बे-सदा में हम लोग अल्फ़ाज़ के बुत तराशते हैं ऐ साया-ए-अब्र अब तो रुक जा इक उम्र से धूप काटते हैं Share on: