हम नग़्मा-सराई कैसे करें बेदाद-गरों की महफ़िल में आँखों से लहू का राग बहे तो जज़्ब हो किस पत्थर-दिल में गुलशन पे लपकते कौंदे को बुलबुल की सदा से ख़ुश करना गुलशन के मुहाफ़िज़ की है ख़ुशी शायद बर्बादी-ए-कामिल में तुम वज़-ए-मोहब्बत क्या जानो तुम को वो जुनूँ क्यूँ हासिल हो मुश्किल है बहुत ही शर्त-ए-वफ़ा नाहक़ न पड़ो इस मुश्किल में तन्नाज़ हँसी मस्मूम नज़र ये कैसी फ़ज़ा-ए-उल्फ़त है देखें इस दौर के शाम-ओ-सहर कब तक रहें नर्ग़ा-ए-क़ातिल में