हम ने ख़याल-ए-सख़्ती-ए-जादा नहीं किया तर्क-ए-सफ़र का कोई इरादा नहीं किया उश्शाक़-ए-अहद-ए-नौ ने सर-ए-राहगुज़ार-ए-शौक़ गर्द-ए-सफ़र को तन का लबादा नहीं किया हम ने भी लौट आने में ताख़ीर की बहुत उस ने भी इंतिज़ार ज़ियादा नहीं किया हम हैं ग़म-ए-फ़िराक़ के हुरमत-शनास लोग ग़म को सुपुर्द-ए-साग़र-ओ-बादा नहीं किया तेरे सिवा भी कोई दर-ए-जाँ पे आ सके इतना भी हम ने दिल को कुशादा नहीं किया