हम नीं सजन सुना है उस शोख़ के दहाँ है लेकिन कभू न देखा कीता है और कहाँ है ढूँडा हज़ार तो भी तेरा निशाँ न पाया लश्कर में गुल-रुख़ाँ के तेरी मसल कहाँ है अब तिश्नगी का रोज़ा शायद खुले हमारा शाम ओ शफ़क़ सजन का मिस्सी ओ रंग-ए-पाँ है दिल में किया है दावा अँखियाँ हुई हैं मुंकिर तेरी कमर का झगड़ा इन दो के दरमियाँ है रहता हूँ ऐ पियारे क़दमों तले तुम्हारे जिस राह आवते हो आजिज़ का व्हीं मकाँ है तुझ ख़त्त-ए-पुश्त-ए-लब में तिस का सुख़न हुआ सब्ज़ उस की ज़बाँ दहन में मानिंद-ए-बर्ग-ए-पाँ है पीरी सीं क़द कमाँ है हर-चंद 'आबरू' का इस नौजवाँ की ख़ातिर दिल अब तलक कशाँ है