हुआ हूँ दिल सेती बंदा पिया की मेहरबानी का फ़िदा करता हूँ हर दम जी कूँ अपने यार-ए-जानी का दिए में जूँ बती हो यूँ दहकती है ज़बाँ मुख में करूँ जिस रात के अंदर बयाँ सोज़-ए-निहानी का उंझो अँखियाँ के रोग़न हैं हमारे शोला-ए-दिल कूँ बुझाना इश्क़ की आतिश नहीं है काम पानी का असर करता है नाला 'आबरू' का संग के दिल में हुनर सीखा है शायद कोहकन सूँ तेशा-रानी का