हम-पल्ला मिरे आज सिकंदर भी नहीं है इक सल्तनत-ए-हुस्न मिरे ज़ेर-ए-नगीं है वो होश से बेगाना हो तो देख ले जिस को क्या चीज़ है जादू जो निगाहों में नहीं है दूर इतना कि दुनिया-ए-तख़य्युल में न आए वो पास है उतना कि रग-ए-जाँ से क़रीं है तेरे रुख़-ए-ताबाँ का निगहबान है काकुल नज़्ज़ारा-कुनाँ कुफ़्र की आग़ोश में दीं है इस बाब में कामिल है यक़ीं मुझ को तो 'जौहर' सब कुछ सही वो अहद-फ़रामोश नहीं है