हलाक-ए-जफ़ा-ओ-वफ़ा हो रहा हूँ कि इक बंदा-ए-बे-ख़ुदा हो रहा हूँ नहीं ये जुनून-ए-मोहब्बत नहीं है मैं आप आप से आश्ना हो रहा हूँ मिरा हर क़दम नक़्श-ए-राह-ए-तलब है तिरी राह का रहनुमा हो रहा हूँ उधर कर्ब की मंज़िलें बढ़ रही हैं इधर दर्द-ए-दिल की दवा हो रहा हूँ न छेड़ो अभी साज़-ए-उल्फ़त पे नग़्मा अभी अपने दिल की सदा हो रहा हूँ यही है यही शेवा-ए-इश्क़ हमदम मैं ख़ुद मुब्तला-ए-जफ़ा हो रहा हूँ जबीं रख के साक़ी के क़दमों में 'जौहर' ख़ुदा जाने अब क्या से क्या हो रहा हूँ