हम परियों के चाहने वाले ख़्वाब में देखें परियाँ दूर से रूप का सदक़ा बाँटें हाथ न आएँ परियाँ राह में हाइल क़ाफ़ पहाड़ और हाथ चराग़ से ख़ाली क्यूँकर जिन्नों के चंगुल से हम छुड़वाएँ परियाँ आशाओं की सोहनी सजरी सेज सजाए रक्खूँ जाने कौन घड़ी मेरे घर में आन बराजें परियाँ सारे शहर को चाँदनी की ख़ैरात उस रोज़ मैं बाँटूँ जिस दिन ख़्वाहिश के आँगन में छम से उतरें परियाँ कच्चे घरों से आस-हवेली जाने की ख़्वाहिश में पहरों आईने के सामने बैठ के सँवरें परियाँ परियों की तौसीफ़ में ऐसे शेर 'रज़ा' मैं लिक्खूँ जिन को सुन कर उड़ती आएँ झूमें नाचें परियाँ