हर एक चेहरे पे कंदा हिकायतें देखो ख़ुलूस देख चुके हो तो नफ़रतें देखो जो अहल-ए-दिल हो तो एहसास-ए-आगही के लिए बुझी निगाहों में तहरीर आयतें देखो रगों में खोलते ख़ूँ की क़सम न खाओ कभी गुदाज़ जिस्मों में पिन्हाँ सलाहियतें देखो जो हो सके तो कभी तपती शाह-राहों पर टपकते ख़ून से लिक्खी इबारतें देखो नफ़स नफ़स में है एहसास-ए-यूरिश-ए-हस्ती ख़ुद अपनी ज़ात से अपनी बगावतें देखो लबों पे मोहर-ए-ख़मोशी के बावजूद 'रज़ा' गुज़र रही हैं जो अंदर क़यामतें देखो