हम पे रखे गए इल्ज़ाम न जाने क्या क्या बन गए एक मोहब्बत के फ़साने क्या क्या मंज़िल-ए-दार-ओ-रसन क़ैद-ए-सितम दश्त-ए-बला पाए हैं अहल-ए-मोहब्बत ने ठिकाने क्या क्या कोई अंदाज़-ए-नदामत कोई नाला कोई अश्क ढूँडे हैं चश्म-ए-करम तू ने बहाने क्या क्या कभी आँधी कभी तूफ़ाँ कभी शो'ले कभी बर्क़ मेरे गुलशन पे भी गुज़रे हैं ज़माने क्या क्या दौलत सब्र-ओ-सुकूँ गौहर-ए-अश्क-ए-रंगीं हम ने ग़ुर्बत में लुटाए ख़ज़ाने क्या क्या नज़र-ए-अहल-ए-मोहब्बत ही समझ सकती है लब-ए-ख़ामोश पे होते हैं फ़साने क्या क्या अब मिरे सामने जब कोई गले मिलता है खिंच के आ जाते हैं आँखों में ज़माने क्या किया कभी कलियों का तबस्सुम कभी तारों की चमक दिल तड़पने के भी होते हैं बहाने क्या क्या कभी हल्का सा तबस्सुम कभी झेंपी सी नज़र हम से पूछो कि लगे दिल पे निशाने क्या क्या हम ख़ता-कार-ए-मुहब्बत हैं ये हम से पूछो हुस्न-ए-मा'सूम को आते हैं बहाने क्या क्या अन-गिनत रोज़ ख़यालों के महल बनते हैं सोचता है दिल-ए-बेताब न जाने क्या क्या कोई 'शारिब' कोई 'मुल्ला' कोई 'ग़ालिब' कोई 'मीर' मंज़िल-ए-इश्क़ से गुज़रे हैं दिवाने क्या क्या