रोक दे उस को भला किस की मजाल आता है हर तरक़्क़ी के तआ'क़ुब में ज़वाल आता है लर्ज़ा-अंगेज़ सही तमकनत-ए-तख़्त-ए-शही लेक जब अर्श-ए-मुअ'ल्ला को जलाल आता है एक दिल प्यार भरा सब के लिए लाया हूँ न मुझे और कोई फ़न न कमाल आता है मैं ने मुर्शिद से दुआ चाही तो हँस कर ये कहा प्यार घर छोड़ के जाता है जो माल आता है जब ये उफ़्ताद पड़ी मुझ पे समझ में आया एक शीशे की तरह दिल में भी बाल आता है नाग का ज़हर भी शीरीं है ज़रा याद रहे सर-ए-मिंबर कोई नौ-शीना मक़ाल आता है देखते जाइए सामेअ' नज़र आने के नहीं अंजुमन में वो कोई ख़ैर-सगाल आता है सितम ईजाद न कर ऐ सितम-ईजाद बहुत तेरे सर कितनी ही नस्लों का वबाल आता है दोनों पैदा तो खनकती हुई मिट्टी से हुए ताल पर तुम को मुझे क़ाल पे हाल आता है दिल तो फिर दिल है मियाँ ज़ेहन भी क़ाबू में कहाँ जिस को चाहो कि न आए वो ख़याल आता है अब तो पनघट की वो दोशीज़ा तलाशो जिस को न भर आता है न मश्कीज़ा सँभाल आता है इक मजानीन की दुनिया है ये जादू-नगरी बस ये देखो कि किसे सेहर-ए-हलाल आता है ख़ुद-फ़रेबी तो हैं मुश्ताक़ कि इस दस्त में कब आसमाँ रंग-ए-फुसूँ-साज़-ए-शग़ाल आता है मुंतज़िर बैठे हैं हम भी कि पए दाद-ए-ग़ज़ल ज़ैग़म आता है कोई कोई ग़ज़ाल आता है हँसने वाले कहीं कुछ सोच के रोने न लगें बज़्म में 'कौसर'-ए-आशुफ़्ता-ख़याल आता है