हम-रंग-ओ-हम-ख़याल मिरा दिल नहीं रहा मैं दिल के और दिल मिरे क़ाबिल नहीं रहा नज़्र-ए-निगाह-ए-नाज़ हुआ दिल नहीं रहा अब ग़म ये है कि मैं किसी क़ाबिल नहीं रहा दर्द इक ज़रा सा सहने के क़ाबिल नहीं रहा दिल नाज़नीं बना है मिरा दिल नहीं रहा डूबे न थे तो हसरत-ए-साहिल थी बरक़रार डूबे तो फिर तकफ़्फ़ुर-ए-साहिल नहीं नहीं था कौन बा-वफ़ा मुझे किस से उमीद थी हमदर्द बन के दर्द रहा दिल नहीं रहा हूँ ज़िंदगी-ए-ग़म कि ग़म-ए-ज़िंदगी हूँ मैं अब जज़्बा-ए-ख़ुशी मिरे क़ाबिल नहीं रहा आ ही गया था ख़ाना-ए-दिल में मिरे कोई कम्बख़्त कैसे वक़्त मिरा दिल नहीं रहा ग़म और ख़ुशी हैं दोनों बराबर मिरे लिए जब इख़्तियार ही में मिरा दिल नहीं रहा बिस्मिल का रक़्स देख के क़ातिल तड़प उठा अब इम्तियाज़-ए-बिस्मिल-ओ-क़ातिल नहीं रहा परवाना जल के ख़ाक हुआ शम्अ' बुझ गई अब और कोई रौनक़-ए-महफ़िल नहीं रहा इतना क़रीब हो के भी तरसा करूँ तुझे शायद मैं तेरी दीद के क़ाबिल नहीं रहा साहिल को अपने छोड़ के नाव आगे बढ़ गई लौटे बग़ैर फिर कोई साहिल नहीं रहा ग़म ने 'ज़की' दिखाई है वो राह-ए-ज़िंदगी जीना हमारे वास्ते मुश्किल नहीं रहा