हम से करता है अबस गुफ़्तार कज रास्त-बाज़ों से न हो ऐ यार कज इश्क़-ए-अबरू से तिरी ऐ कज-कुलाह बाँधता है माह-ए-नौ दस्तार कज है तवाज़ो भी बुज़ुर्गी का निशाँ क्यूँ न हो पीरी में जिस्म-ए-ज़ार कज कज-रवी इस ज़ुल्फ़ का है ख़ास्सा जिस तरह है मार की रफ़्तार कज हात यूँ क़ातिल-जबीनों का लगा जिस तरह पहने सनम ज़ुन्नार कज रास्ती इक बात में उस की नहीं कज रवा कज-मज ज़बाँ गुफ़्तार कज क़स्र-ए-तन पीरी में झुक कर क्या रुके गिर पड़े कोहना जो हो दीवार कज जा-ए-नज़्ज़ारा है फिरते हैं हसीं टोपियाँ रख कर सर-ए-बाज़ार कज कज-नुमा आईना-ए-आलम है 'अर्श' बे-सबब टेढ़े अबस हैं यार कज