कूचा-ए-यार में गदाई की इक यही काम की कमाई की हाए वो इंतिज़ार के लम्हे आह ये साअतें जुदाई की हम ने हुस्न-ए-अदा कहा इस को जब कभी तू ने कज-अदाई की दोस्तो देख भाल कर चलना सख़्त मंज़िल है आश्नाई की शैख़-साहब ख़ुदा ही बन बैठे है बुरी चाट पारसाई की रंग-ए-'हसरत' में आज ऐ 'कौसर' ख़ूब तू ने ग़ज़ल-सराई की