हम से मिल कर कोई गुफ़्तुगू कीजिए पूरी दिल की यही जुस्तुजू कीजिए आप की दुश्मनी का मैं हूँ मो'तरिफ़ वार कीजे मगर दू-बदू कीजिए दामन-ए-दिल की लाखों हुईं धज्जियाँ कीजिए कीजिए अब रफ़ू कीजिए फूल मौसम में काँटों के व्यापार से जिस्म-ओ-जान-ओ-जिगर मत लहू कीजिए ज़िंदगी हो मगर दर्द-ए-हिज्राँ न हो ऐसे जीने की क्या आरज़ू कीजिए आप कितने हसीं हैं नहीं जानते आइने को ज़रा रू-ब-रू कीजिए 'फ़रहत'-ए-जाँ की क्यूँ जुस्तुजू कीजिए बुझते जीवन की क्या अब नुमू कीजिए