हम से पूछा क्या बीती है आख़िर-ए-शब के मारों पर सहरा सहरा रंग बिखेरे रक़्स किया अँगारों पर इक साया शरमाता लजाता राह में तन्हा छोड़ गया मैं परछाईं ढूँड रहा हूँ टूटी हुई दीवारों पर सर-गश्ता थे मौज-ए-हवा से बीत गया वो मौसम तो हम बर्ग-ए-ख़िज़ाँ की मानिंद अब आवारा हैं कोहसारों पर भूली-बिसरी यादें आ कर सरगोशी करती हैं फिर से कोई गीत सुनाओ दिल के शिकस्ता तारों पर