हम से तंहाई के मारे नहीं देखे जाते बिन तिरे चाँद सितारे नहीं देखे जाते हारना दिन का है मंज़ूर मगर जान-ए-अज़ीज़ हम से गेसू तिरे हारे नहीं देखे जाते दिल फँसा भी हो भँवर में तो कोई बात नहीं रंज में डूबते प्यारे नहीं देखे जाते जिन के पैरों में समुंदर थे झुकाए नज़रें उन की आँखों में किनारे नहीं देखे जाते छीन ले मेरी समाअत की बसारत या-रब उन लबों पर मिरे नारे नहीं देखे जाते जिन की आहट से बंधी थी मिरे दिल की धड़कन उन निगाहों के इशारे नहीं देखे जाते तूर पत्थर था मिरे दिल को दिखा अपनी झलक फिर ये कहना कि नज़ारे नहीं देखे जाते माह-ए-कामिल भी जिसे देख के सज्दे में गिरे आँख में उस की सितारे नहीं देखे जाते