जब तक चराग़-ए-शाम-ए-तमन्ना जले चलो दो-चार ही क़दम है ये रस्ता चले चलो इस हद के ब'अद कोई नहीं दरमियाँ में हद तय कर चुके हो और जो सब मरहले चलो बे-ख़्वाब ''ख़ून-आँख'' में दफ़ना के ज़ख़्म-ए-ख़्वाब मिलने को है सहर से ये शब भी गले चलो शायद वो ढूँढता हो तुम्हें जिस की खोज है चेहरे पे जज़्ब-ए-दिल के उजाले मले चलो हैं बादबाँ शिकस्ता मुख़ालिफ़ हवा मगर जब तक न दिल में आस का सूरज ढले चलो फिर कौन नाज़ उस के उठाएगा बज़्म में तन्हाइयों को अपने ही हम-राह ले चलो आँखों में ख़्वाब आग रगों में जवान अज़्म 'शहज़ाद' अब कहाँ हैं वो सब सिलसिले चलो