हम से वारफ़्ता उल्फ़त हैं बहुत कम पैदा हाथ से खो न हमें होंगे न फिर हम पैदा इल्तियाम इस का जो है लुत्फ़-ए-बुताँ पर मौक़ूफ़ ज़ख़्म-ए-दिल का मिरे होता नहीं मरहम पैदा बद न कह बद को कि सन्ना-ए-बद-ओ-नेक है एक ख़ार-ओ-गुल होते हैं इक शाख़ से बाहम पैदा नहीं अबरू तिरे रुख़्सार के सज्दे के लिए अक्स-ए-अंगुश्त-ए-शहादत ने किया ख़म पैदा मैं भी हूँ बाइ'स-ए-ईजाद 'हवस' इक शय का मेरी ख़ातिर मिरे ख़ालिक़ ने किया ग़म पैदा