हम उन से अगर मिल बैठे हैं क्या दोश हमारा होता है कुछ अपनी जसारत होती है कुछ उन का इशारा होता है कटने लगीं रातें आँखों में देखा नहीं पलकों पर अक्सर या शाम-ए-ग़रीबाँ का जुगनू या सुब्ह का तारा होता है हम दिल को लिए हर देस फिरे इस जिंस के गाहक मिल न सके ऐ बंजारो हम लोग चले हम को तो ख़सारा होता है दफ़्तर से उठे कैफ़े में गए कुछ शेर कहे कुछ कॉफ़ी पी पूछो जो मआश का 'इंशा'-जी यूँ अपना गुज़ारा होता है