हम उन से छूट के यूँ ज़िंदगी के साथ रहे कि जैसे कोई किसी अजनबी के साथ रहे बड़े मज़े की है दोनों की दास्तान-ए-हयात हम उन के साथ रहे वो ख़ुदी के साथ रहे उस अंजुमन में जहाँ सब हरीफ़-ए-उल्फ़त थे हम अहल-ए-इश्क़ बड़ी बेबसी के साथ रहे जहाँ जहाँ मैं गया वो वहाँ वहाँ मिरे साथ रहे ज़रूर मगर बे-रुख़ी के साथ रहे तिरे करम के तिरी इल्तिफ़ात के जल्वे मिरे जहाँ में निहायत कमी के साथ रहे वही समझते थे मफ़हूम-ए-ज़िंदगी शायद ब-क़ैद-ए-होश जो दीवानगी के साथ रहे मताअ'-ए-इशरत-ए-बे-नाम की तलब में 'निहाल' ग़मों के शहर में भी हम ख़ुशी के साथ रहे