दिल में तिरे ख़याल की दुनिया लिए हुए बैठा हूँ एक कूज़े में दरिया लिए हुए जिस में न ज़िंदगी का सुकूँ है न कैफ़ियत कुछ लोग ख़ुश हैं ऐसा सवेरा लिए हुए या-रब ग़ुरूर-ए-ज़ब्त-ए-मोहब्बत की ख़ैर हो आँखें हैं इक थमा हुआ दरिया लिए हुए फ़ैज़-ए-बहार-ओ-जश्न-ए-चराग़ाँ के बावजूद कुछ रास्ते हैं अब भी अंधेरा लिए हुए ता'मीर-ए-क़स्र-ए-नौ की तमन्ना बजा मगर ख़ुद शीशागर है हाथ में तेशा लिए हुए जब भी उस अंजुमन में गए हैं हम ऐ 'निहाल' पेशानियाँ मिली हैं पसीना लिए हुए