हम उन्हें दर्द-ए-दिल सुनाते हैं वो फ़क़त हाँ में हाँ मिलाते हैं अपने वा'दों को भूल जाते हैं बेवफ़ा वो हमें बताते हैं जिन के किरदार में हैं दाग़ कई वो हमें आइना दिखाते हैं साथ देते नहीं किसी का भी साथ सब के नज़र जो आते हैं जिस की फ़ितरत को जानते हैं हम उस से उम्मीद क्यूँ लगाते हैं जिन अँधेरों से डर रहे हो तुम वो उजालों से ख़ौफ़ खाते हैं इन चराग़ों का हौसला देखो आंधियों को ये मुँह चिढ़ाते हैं दिल में पल जाए जो ग़लत-फ़हमी ख़ूँ के रिश्ते भी टूट जाते हैं हम ने देखा 'जिजीविषा' अक्सर ना-ख़ुदा कश्तियाँ डुबाते हैं