हम यहाँ रहते हैं अपनी ही निगहबानी में जब से मुश्किल नज़र आने लगी आसानी में मेरे हाथों में ये कश्कोल थमाया किस ने कैसा सामान मिला बे-सर-ओ-सामानी में हाए क्या लोग थे जो जोश-ओ-जुनूँ रखते थे अब कोई लुत्फ़ नहीं चाक-गरेबानी में कभी इस शहर में कुछ देर ठहर कर देखो ज़िंदगानी को रवाँ मौत की ताबानी में हम ने इक उम्र बसर की है यहाँ भी लेकिन कुछ इज़ाफ़ा न हुआ दश्त की वीरानी में अक्स मेरा मुझे लगता है जहाँ-ताब हुआ सर-ए-कोहसार दिखाई जो दिया पानी में मेरे अतराफ़ हैं कितने ही परिंदे ख़ामोश है कोई कामिल-ए-फ़न कार-ए-सुलैमानी में