हमारे दिल को तिरा इंतिज़ार कब से है अब आ भी जा कि ये दिल बे-क़रार कब से है तुम्हारे आने से गुलशन महक ये उठता है तुम्हारी आस लगाए बहार कब से है अब हँस के तंज़ के तीरों से वार ख़ूब करो तुम्हें ख़बर है हमें तुम से प्यार कब से है मिरा ये हाल बना कर वो सब से पूछता है ज़रा बताओ ये दीवाना-वार कब से है ये वो ही शख़्स है जो हँस के बात करता था तुम ही कहो कि ये अब अश्क-बार कब से है कहाँ तलक यूँ छुपाओगे राज़-ए-दिल अपना ज़माने भर को ख़बर है ये प्यार कब से है ख़ुदा करे वो घड़ी जल्द आए कि जिस में कहें वो मुझ से हमें तुम से प्यार कब से है तिरी जुदाई का ग़म हँस के सह रहा है 'सलीम' ये तुम समझते हो ये ग़म-गुसार कब से है