हमारे जिस्म अगर रौशनी में ढल जाएँ तसव्वुरात-ए-ज़मान-ओ-मकाँ बदल जाएँ हमारे बीच हमें ढूँडते फिरें ये लोग हम अपने-आप से आगे कहीं निकल जाएँ ये क्या बईद किसी आने वाले लम्हे में हमारे लफ़्ज़ भी तस्वीर में बदल जाएँ हम आए रोज़ नया ख़्वाब देखते हैं मगर ये लोग वो नहीं जो ख़्वाब से बहल जाएँ ये लोग असीर हैं कुछ ऐसी ख़्वाहिशों के 'रज़ा' जो तितलियों की तरह हाथ से निकल जाएँ