हमारे पास आने पर हया से काम लेती हो मगर तन्हाई में अक्सर हमारा नाम लेती हो सर-ए-महफ़िल तो कोई गुफ़्तुगू करती नहीं हो तुम निगाहों से मिरे दिल के मगर पैग़ाम लेती हो मिरे पीने से नफ़रत क्यों है तुम को ये तो बतलाओ सुराही तोड़ देती हो कभी तुम जाम लेती हो सुनाती हो मेरी चाहत के क़िस्से तुम सहेली को ख़ुशी से झूम के अपना ही दामन थाम लेती हो तुम्हारे दिल की धड़कन में बसे जो प्यार के नग़्मे हमारा नाम उन नग़्मों में सुब्ह-ओ-शाम लेती हो गवारा कर नहीं सकतीं अगरचे रूठ के जाना तो फिर क्यों बे-रुख़ी का अपने सर इल्ज़ाम लेती हो मुझे मालूम है तुम 'आश्ना' हो मेरी चाहत से अदा-ए-बे-रुख़ी से भी मगर तुम काम लेती हो