हमारे सामने बेगाना-वार आओ नहीं नियाज़-ए-अहल-ए-मोहब्बत को आज़माओ नहीं हमें भी अपनी तबाही पे रंज होता है हमारे हाल-ए-परेशाँ पे मुस्कुराओ नहीं जो तार टूट गए हैं वो जड़ नहीं सकते करम की आस न दो बात को बढ़ाओ नहीं दिए ख़ुलूस-ओ-मोहब्बत के बुझते जाते हैं गराँ न हो तो हमें इस क़दर सताओ नहीं दिल-ओ-निगाह को कब तक कोई बिछाए रहे ये देख कर कि उधर से कोई झुकाव नहीं ये और बात है काँटों में जी बहल जाए नहीं कि लाला-ओ-गुल से मुझे लगाव नहीं