जिस की ख़ातिर मैं ने दुनिया की तरफ़ देखा न था वो मुझे यूँ छोड़ जाएगा कभी सोचा न था उस के आँसू ही बताते थे न अब लौटेगा वो इस से पहले तो बिछड़ते वक़्त यूँ रोता न था रह गया तन्हा मैं अपने दोस्तों की भीड़ में और हमदम वो बना जिस से कोई रिश्ता न था क़हक़हों की धूप में बैठे थे मेरे साथ सब आँसुओं की बारिशों में पर कोई भीगा न था अश्क पलकों पे बिछड़ कर अपनी क़ीमत खो गया ये सितारा क़ीमती था जब तलक टूटा न था मरमरीं गुम्बद पे रुकती थी हर इक प्यासी नज़र पर कसी ने मक़बरे में ग़म छुपा देखा न था