हमारे साथ अजब ही मुआमला हुआ है

हमारे साथ अजब ही मुआमला हुआ है
हवा ठहर सी गई है दिया जला हुआ है

उसी मक़ाम पे इक क़ाफ़िला रुका हुआ है
जहाँ तुम्हारा मिरा रास्ता जुदा हुआ है

न जाने बाद-ए-सबा कह गई है कान में क्या
कि फूल शाख़-ए-बुरीदा पे भी खिला हुआ है

मिले इक उम्र के ब'अद और इस तरह से मिले
वो चुप है और हमारा भी सर झुका हुआ है

दयार-ए-महर की सरहद तलाश करने को
मह ओ नुजूम का इक क़ाफ़िला चला हुआ है

हक़ीक़तें तो अटल हैं बदल नहीं सकतीं
मगर किसी की तसल्ली से हौसला हुआ है

बजाए दो के बजे एक हाथ से ताली
मुआमलात में ऐसा कभी भला हुआ है

मिरी उमीद का है तेरी आरज़ू का है
दिया है और बड़ी देर से जला हुआ है

उमीद खिल सी गई है महक उठा है ख़याल
सबा की नर्म सी दस्तक पे दिल को क्या हुआ है

महक रहा है मिरे ख़ार ख़ार जीवन में
वो लम्हा जो अभी मुझ में गुलाब सा हुआ है


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