सहराओं की प्यास बुझाने कब आए बरसात न जाने मुझ को मेरी याद दिलाने आए हैं कुछ दोस्त पुराने जाने घर किस किस के जलेंगे निकले हैं वो जश्न मनाने ख़्वाबों की वादी में मिले हैं बीते लम्हे गुज़रे ज़माने वक़्त के टूटे आईने में चेहरे हैं सब जाने पहचाने तुम से मिले तो याद आया है देखे थे कुछ ख़्वाब सुहाने रात की बाँहों में खुलते हैं तेरी यादों के मयख़ाने उम्मीदें घर छोड़ चुकी थीं कब आए हैं होश ठिकाने दश्त की जलती रेत पे 'ख़ुसरव' वक़्त लिखेगा अपने फ़साने