हमारे शे'रों में जो लोग ढलने लगते हैं

हमारे शे'रों में जो लोग ढलने लगते हैं
हमारी ज़ात से क्यूँकर वो जलने लगते हैं

अजीब बात है तुम साथ चल नहीं पाते
हमारे साथ तो रस्ते भी चलने लगते हैं

तुम्हारी आँख किसी और सम्त उठने से
हज़ार ख़दशे यहाँ दिल में पलने लगते हैं

तुम्हारी इज़्ज़त-ओ-तकरीम के लिए अक्सर
हम अपनी ज़ात का पहलू बदलने लगते हैं

सितारा-वार ख़यालों के सिलसिले 'ज़रयाब'
गुमान-ओ-वहम के साँचों में ढलने लगते हैं


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